tulsi pooja - तुलसी ना सिर्फ आयुर्वैदिक गुणो का भंडार है बल्कि इसका हिन्दू धर्म मे भी बड़ा स्थान है। तुलसी का पौधा हमारे लिए धार्मिक एवं आध्यात्मिक महत्व का पौधा है। जिस घर में इसका वास होता है वहा
आध्यात्मिक उन्नति के साथ सुख-शांति एवं आर्थिक समृद्धता स्वतः आ जाती है।
वातावारण में स्वच्छता एवं शुद्धता, प्रदूषण का शमन, घर परिवार में आरोग्य की जड़ें मज़बूत करने, श्रद्धा तत्व को जीवित करने जैसे अनेकों लाभ इसके हैं।
आध्यात्मिक उन्नति के साथ सुख-शांति एवं आर्थिक समृद्धता स्वतः आ जाती है।
वातावारण में स्वच्छता एवं शुद्धता, प्रदूषण का शमन, घर परिवार में आरोग्य की जड़ें मज़बूत करने, श्रद्धा तत्व को जीवित करने जैसे अनेकों लाभ इसके हैं।
पौराणिक कथा
तुलसी का इतिहास पौराणिक कथाओ से जुड़ा है, पौराणिक काल में एक लड़की
थी जिसका नाम वृंदा था। उसका जन्म राक्षस कुल में हुआ था। वृंदा बचपन से ही भगवान विष्णु जी की परम भक्त थी। बड़े ही प्रेम से भगवान की पूजा किया करती थी।
थी जिसका नाम वृंदा था। उसका जन्म राक्षस कुल में हुआ था। वृंदा बचपन से ही भगवान विष्णु जी की परम भक्त थी। बड़े ही प्रेम से भगवान की पूजा किया करती थी।
जब वह बड़ी हुई तो उनका विवाह राक्षस कुल में दानव राज जलंधर से हो
गया,जलंधर समुद्र से उत्पन्न हुआ था। वृंदा बड़ी ही पतिव्रता वादी स्त्री थी, सदा अपने पति की सेवा किया करती थी।
गया,जलंधर समुद्र से उत्पन्न हुआ था। वृंदा बड़ी ही पतिव्रता वादी स्त्री थी, सदा अपने पति की सेवा किया करती थी।
tulsi pooja

एक बार देवताओं और दानवों में युद्ध हुआ जब जलंधर युद्ध पर जाने लगे तो वृंदा ने कहा -स्वामी आप युद्ध पर जा रहे हैं आप जब तक युद्ध में रहेगें में पूजा में बैठकर आपकी जीत के लिए अनुष्ठान
करुंगी,और जब तक आप वापस नहीं आ जाते मैं अपना संकल्प नही छोडूगीं।जलंधर तो युद्ध में चले गए और वृंदा व्रत का संकल्प लेकर पूजा में बैठ गई।
उसकी इस सच्ची निष्ठा वाले पूजा अनुष्ठान
और संकल्प की वजह से जलंधर इतना ताकतवर हो गया था या फिर ऐसा कह
लो की वृन्दा की पूजा जलंधर की रक्षाकवच बन कर रक्षा कर रही थी जिस वजह से देवता उस से जीत नही पा रहे थे, सारे देवता जब हारने लगे तो सब देवता भगवान विष्णु जी के पास गए।
लो की वृन्दा की पूजा जलंधर की रक्षाकवच बन कर रक्षा कर रही थी जिस वजह से देवता उस से जीत नही पा रहे थे, सारे देवता जब हारने लगे तो सब देवता भगवान विष्णु जी के पास गए।
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सबने भगवान से प्रार्थना की तो भगवान कहने लगे कि-वृंदा मेरी परम भक्त है मैं उसके साथ छल नहीं कर सकता पर देवता बोले - भगवान दूसरा कोई उपाय भी तो नहीं है अब आप ही हमारी मदद कर सकते हैं।
भगवान ने जलंधर का ही रूप रखा और वृंदा के महल में पहुंच गए जैसे ही
वृंदा ने अपने पति को देखा,वे तुरंत पूजा में से उठ गई और उनके चरण छू लिए इस तरहा से पूजा से हटने की वजह से वृंदा का संकल्प टूट गया,
वृंदा ने अपने पति को देखा,वे तुरंत पूजा में से उठ गई और उनके चरण छू लिए इस तरहा से पूजा से हटने की वजह से वृंदा का संकल्प टूट गया,
और उधर युद्ध में देवताओं ने जलंधर को मार दिया और उसका सिर काटकर अलग कर दिया। उनका सिर वृंदा के महल में गिरा जब वृंदा ने देखा कि मेरे पति का सिर तो कटा पड़ा है तो फिर ये जो मेरे सामने खड़े है ये कौन है?
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उन्होंने पूछा - आप कौन हैं जिसका स्पर्श मैंने किया,तब भगवान अपने रूप में
आ गए पर वे कुछ ना बोल सके,वृंदा सारी बात समझ गई। वृंदा क्रोधित होकर भगवान को श्राप दे दिया की “आप पत्थर के हो जाओ”,भगवान तुंरत पत्थर के हो गए। सभी देवता हाहाकार करने लगे। लक्ष्मी जी रोने लगीं और प्राथना करने लगीं तब जा कर वृंदा जी ने भगवान को वापस वैसा ही कर दिया और अपने पति का सिर लेकर वे सती हो गई।
आ गए पर वे कुछ ना बोल सके,वृंदा सारी बात समझ गई। वृंदा क्रोधित होकर भगवान को श्राप दे दिया की “आप पत्थर के हो जाओ”,भगवान तुंरत पत्थर के हो गए। सभी देवता हाहाकार करने लगे। लक्ष्मी जी रोने लगीं और प्राथना करने लगीं तब जा कर वृंदा जी ने भगवान को वापस वैसा ही कर दिया और अपने पति का सिर लेकर वे सती हो गई।
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उनकी राख से एक पौधा निकला तब भगवान विष्णु जी ने कहा- आज से इनका नाम तुलसी है,और मेरा एक रूप इस पत्थर के रूप में रहेगा जिसे शालिग्राम के नाम से तुलसी जी के साथ ही पूजा जाएगा और मैं बिना तुलसी जी के प्रसाद स्वीकार नहीं करुंगा।
तब से तुलसी जी की पूजा सभी करने लगे और तुलसी जी का विवाह शालिग्राम जी के साथ कार्तिक मास में किया जाता है। देवउठनी एकादशी के दिन इसे तुलसी विवाह के रूप में मनाया जाता है।
क्यों की जाती है तुलसी माता की पूजा
तुलसी और तुलसी पूजन का पूरे भारत मे बहुत बड़ा महत्तव है।तुलसी माता की पूजा घर मे सुख शांति और समृद्धि तथा मनोवांछित फल की प्राप्ति के लिए और घर मे कलेस को दूर करने के लिए भी इसकी पूजा की जाती है।
तुलसी पूजन दिवस 25 December को भारत मे मनाया जाता है। इस दिन
इसाइयों का मुख्य पर्व “क्रिसमस” भी होता है। तुलसी जी का पौधा वैज्ञानिक, धार्मिक,और औषधीय उपचार के रूप से प्रसिद्ध तथा महत्तवपूर्ण है।
इसाइयों का मुख्य पर्व “क्रिसमस” भी होता है। तुलसी जी का पौधा वैज्ञानिक, धार्मिक,और औषधीय उपचार के रूप से प्रसिद्ध तथा महत्तवपूर्ण है।
ऐसे की जाती है तुलसी माता की पूजा
वैसे तो तुलसी की पूजा घर मे हमेशा करनी चाहिए। पर एक खास पर्व पीआर पूजा करने पर इसका लाभ 10 गुना बारह जाता है।
तुलसी पूजा की विधि :- tulsi pooja ki vidhi
- सुबहा स्नान करने के बाद अपने हाथो से तुलसी जी को एक ऊचे स्थान पर विराजित करे। घर की महिलाओ द्वारा इस पर (तुलसी के पौधे पर) चुनरी चढ़ाइ जाए और 16 शृंगार किए जाए।
- अब जल सीचते समय इस मंत्र का उच्चारण करे – “महाप्रसादजननी सर्व सौभाग्यवर्धनी आधि व्याधि हारा नित्य तुलसी त्वां न्मोस्तुते॥
- उसके बाद तुल्स्य्ये नमः नमः मंत्र बोलते हुए गमले पर तिलक करे पुस्प , अक्षत और प्रसाद अर्पित करे।
- दीपक जलाकर तुलसी मैया की आरती करे और फिर 11 बार परिक्रमा करे ।
- अब आपको 11 पत्ते तोड़ने है “पत्ते तोड़ते सम
- तुलसी जी से सुख समृद्धि और संपन्नता की प्रार्थना करे।
तुलसी विवाह का महत्व: tulsi vivah
हिन्दू धर्म में तुलसी का खास महत्व होता है. इसका धार्मिक महत्व तो है ही
साथ में इसका वैज्ञानिक महत्व भी है. वैज्ञानिक दृष्टिकोण से तुलसी में स्वास्थ्यवर्धक गुण पाए जाते हैं. धार्मिक रूप से इसका खास महत्व है.
साथ में इसका वैज्ञानिक महत्व भी है. वैज्ञानिक दृष्टिकोण से तुलसी में स्वास्थ्यवर्धक गुण पाए जाते हैं. धार्मिक रूप से इसका खास महत्व है.
तुलसी माता को मां लक्ष्मी का ही स्वरूप माना जाता है, जिनका विवाह शालीग्राम भगवान से हुआ था. शालीग्राम दरअसल, भगवान विष्णु के आठवें अवतार श्रीकृष्ण का ही रूप माने जाते हैं
कब करे तुलसी माता का विवाह-tulsi mata ka vivah
देवउठनी एकादशी के दिन ही तुलसी विवाह होता है. इस बार देवउठनी एकादशी 19 नवंबर को है. पौराणिक कथाओं के मुताबिक, भगवान शालिग्राम का विवाह तुलसी से हुआ था.
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श्रीकृष्ण भगवान विष्णु जी के आठवें अवतार हैं. तुलसी का विवाह शालिग्राम रूपी भगवान श्रीकृष्ण से किया जाता है. लोग अपने घरों में प्रबोधनी एकादशी का व्रत करते है. तुलसी विवाह के बाद प्रसाद बांटा जाता है.
देवताओ का दिन
देवउठनी से छह महीने तक देवताओं का दिन प्रारंभ हो जाता है। अतः तुलसी का भगवान श्री हरि विष्णु की शालीग्राम स्वरूप के साथ प्रतीकात्मक विवाह कर श्रद्धालु उन्हें वैकुंठ को विदा करते हैं।
आषाढ़ शुक्ल पक्ष की देवशयनी एकादशी को भगवान श्री हरि विष्णु 4 मास के लिए क्षीरसागर में शयन के लिए चले जाते हैं.
देवउठनी या देवोत्थान एकादशी के दिन ही भगवान विष्णु चार मास बाद जागते हैं. तुलसी जी को विष्णु प्रिया भी कहा जाता है, इसलिए देव जब उठते हैं तो हरिवल्लभा तुलसी की प्रार्थना ही सुनते हैं.
देवउठनी एकादशी के दिन तुलसी जी का विवाह शालिग्राम से की जाती है. अगर किसी व्यक्ति को कन्या नहीं है और वह जीवन में कन्या दान का सुख प्राप्त करना चाहता है तो वह तुलसी विवाह कर प्राप्त कर सकता है.
ऐसी मान्यता है कि जिस घर में तुलसी जी की पूजा होती है, उस घर में कभी भी धन धान्य की कमी नहीं रहती. तुलसी विवाह के साथ ही विवाह और मांगलिक कार्यों की शुरुआत हो जाती है.
ऐसे किया जाता है तुलसी माता का विवाह
शाम के समय सारा परिवार इसी तरह तैयार हो जैसे विवाह समारोह के लिए होते हैं।
·तुलसी का पौधा एक पटिये पर आंगन, छत या पूजा घर में बिलकुल बीच में रखें।
·तुलसी के गमले के ऊपर गन्ने का मंडप सजाएं।
·तुलसी देवी पर समस्त सुहाग सामग्री के साथ लाल चुनरी चढ़ाएं।
·गमले में सालिग्राम जी रखें।
·सालिग्राम जी पर चावल नहीं चढ़ते हैं। उन पर तिल चढ़ाई जा सकती है।
·तुलसी और सालिग्राम जी पर दूध में भीगी हल्दी लगाएं।
·गन्ने के मंडप पर भी हल्दी का लेप करें और उसकी पूजन करें।
·अगर हिंदू धर्म में विवाह के समय बोला जाने वाला मंगलाष्टक आता है तो वह अवश्य करें।
·देव प्रबोधिनी एकादशी से कुछ वस्तुएं खाना आरंभ किया जाता है। अत: भाजी, मूली़ बेर और आंवला जैसी सामग्री बाजार में पूजन में चढ़ाने के लिए मिलती है वह लेकर आएं।
·कपूर से आरती करें। (नमो नमो तुलजा महारानी, नमो नमो हरि की पटरानी)
·प्रसाद चढ़ाएं। 11 बार तुलसी जी की परिक्रमा करें। प्रसाद को मुख्य आहार के साथ ग्रहण करें। प्रसाद वितरण अवश्य करें।
·पूजा समाप्ति पर घर के सभी सदस्य चारों तरफ से पटिए को उठा कर भगवान विष्णु से जागने का आह्वान करें-
उठो देव सांवरा, भाजी, बोर आंवला, गन्ना की झोपड़ी में, शंकर जी की यात्रा।
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